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Navratri 2022: Day -7 इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मंत्र।

आज यानी 02 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि की सप्तमी तिथि है। नवरात्रि में सातवें दिन महासप्तमी पड़ती है। इस दिन मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। सदैव शुभ फल देने के कारण इनको शुभंकरी भी कहा जाता है।

शारदीय नवरात्र का आज सातवां दिन है और आज मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा और अर्चना का विधान है। मां के इसी स्वरूप के कारण ही इनका नाम कालरात्रि पड़ा। क्योंकि इनका वर्ण अंधकार की भांति एकदम काला है। सप्तमी तिथि की पूजा सुबह में नवरात्रि में अन्य दिनों की तरह ही होती है लेकिन रात्रि में विशेष पूजन विधान के साथ मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता का यह स्वरूप उपासकों को काल से भी बचाता है अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। कालरात्रि साधक को ज्ञान देती हैं कि अपने क्रोध का उपयोग स्वयं की सफलता के लिए कैसे करना है। आइए जानते हैं मां कालरात्रि पूजा का महत्व...

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इसलिए कहा जाता है शुभंकरी
बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में दिखाई देने वाली माला बिजली की भांति देदीप्यमान है। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है। माता कालरात्रि की पूजा रात्रि के समय भी होती है और उसमें 'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।' इस मंत्र का जप किया जाता है। यह कालरात्रि देवी का सिद्ध मंत्र है। आज रात इस मंत्र के जप से माता की कृपा पा सकते हैं। पौराणिक कथा है कि शुंभ-निशुंभ और उसकी सेना को देखकर मां दुर्गा को भयंकर क्रोध आ गया था और क्रोध की वजह से मां का वर्ण श्यामल हो गया था। इसी श्यामल स्वरूप से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। मां का यह स्वरूप भक्तों के लिए ममतामयी होने है, इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया है।

नकारात्मक शक्तियों को दूर करती हैं मां कालरात्रि
कालरात्रि माता को सभी सिद्धियों की भी देवी कहा जाता है, इसीलिए सभी तंत्र मंत्र के उपासक इस दिन इनकी विशेष रूप से पूजा करते हैं। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस, दानव और सभी पैशाचिक शक्तियां भाग जाती हैं। माना जाता है कि इस दिन इनकी पूजा करने वाले साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है। इनकी पूजा में गुड़ के भोग का विशेष महत्व है। मां कालरात्रि की पूजा, अर्चना और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है।

एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।

अर्थात एक वेणी (बालों की चोटी) वाली, जपाकुसुम (अड़हुल) के फूल की तरह लाल कर्ण वाली, उपासक की कामनाओं को पूर्ण करने वाली, गर्दभ पर सवारी करने वाली, लंबे होठों वाली, कर्णिका के फूलों की भांति कानों से युक्त, तैल से युक्त शरीर वाली, अपने बाएं पैर में चमकने वाली लौह लता धारण करने वाली, कांटों की तरह आभूषण पहनने वाली, बड़े ध्वज वाली और भयंकर लगने वाली कालरात्रि मां हमारी रक्षा करें।

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